हमने देखा है कि हमारा धर्म ही हमारे तेज, हमारे बल, यही नहीं हमारे जातीय जीवन की भी मूल भित्ति है। इस समय मैं यह तर्क वितर्क करने नहीं जा रहा हूं कि धर्म उचित है या नहीं। सही है या नहीं और अंत तक यह लाभदायक है या नहीं, किंतु अच्छा हो या बुरा, धर्म ही हमारे जातीय जीवन का प्राण है, तुम उससे निकल नहीं सकते। अभी और चिरकाल के लिए भी तुम्हें उसी का अवलंब ग्रहण करना होगा और तुम्हें उसी के आधार पर खड़ा होना होगा, चाहे तुम्हें इस पर इतना विश्वास हो या ना हो जो मुझे है। तुम इसी धर्म में बंधे हुए हो और अगर तुम इसे छोड़ दो तो चूर-चूर हो जाओगे वही हमारे जाति का जीवन है और उसे अवश्य ही सशक्त बनाना होगा। तुम जो युगों के धक्के सहकर भी अक्षय हो, इसका कारण केवल यही है कि धर्म के लिए तुमने बहुत कुछ प्रयत्न किया था, उस पर सब कुछ न्यौछावर किया था।
तुम्हारे पूर्वजों ने धर्म रक्षा के लिए सब कुछ साहस पूर्वक सहन किया था। मृत्यु को भी उन्होंने ह्रदय से लगाया था। विदेशी विजेताओं द्वारा मंदिर के बाद मंदिर तोड़े गए, परंतु उस बाढ़ के बह जाने में देर नहीं हुई कि मंदिर के कलश फिर खड़े हो गए। दक्षिण के ये ही कुछ पुराने मंदिर और गुजरात के सोमनाथ के जैसे मंदिर तुम्हें राशि राशि ज्ञान प्रदान करेंगे। वे जाति के इतिहास के भीतर वह गहरी अंतर्दृष्टि देंगे, जो ढेरों पुस्तकों से भी नहीं मिल सकती। देखो कि किस तरह ये मंदिर सैकड़ों आक्रमणों और सेकड़ो पुनरूत्थानों के चिन्ह धारण किए हुए हैं। ये बार-बार नष्ट हुए और बार-बार ध्वंसावशेष से उठकर नया जीवन प्राप्त करते हुए अब पहले ही की तरह अटल भाव से खड़े हैं इसलिए इस धर्म में ही हमारा जातीय मन है, हमारा जातीय जीवन प्रवाह है। इसका अनुकरण करोगे तो यह तुम्हें गौरव की ओर ले जाएगा। इसे छोड़ोगे तो मृत्यु निश्चित है। अगर तुम उस जीवन प्रवाह से बाहर निकल आए तो मृत्यु ही एकमात्र परिणाम होगा और पूर्ण नाश ही एकमात्र परिणीति। मेरे कहने का यह मतलब नहीं कि दूसरी चीज की आवश्यकता ही नहीं। मेरे कहने का यह अर्थ नहीं कि राजनीतिक या सामाजिक उन्नति अनावश्यक है। किंतु मेरा तात्पर्य यही है और मैं तुम्हें सदा इसकी याद दिलाना चाहता हूं कि ये सब यहां गौण विषय है। मुख्य विषय धर्म है, भारतीय मन पहले धार्मिक है, फिर कुछ और। अतः धर्म को ही सशक्त बनाना होगा। - स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद के अमृत संदेश